आँधियाँ चाहे उठाओ, बिजलियाँ चाहे गिराओ
जो जल रहा है दीप तो जलता ही रहेगा ।
आ गईं जो अड़चनों की शिलाऍ रास्ते में
मैं धारा हूँ को मेरा रास्ता बनना होगा ।
चली आ रही हूँ दूर से काँटों के सफ़र पे
अब फूलों को मेरी राह में बिछना होगा ।
पीड़ा के बोझ को झेला है बहुत मैंने
दुर्भाग्य को अब मेरा सौभाग्य बनना होगा ।
चुप है मुद्दतों से मेरा ज़मीं और आसमान
हिला दे जो ज़माने को इसे वो कोहराम बना होगा ।
पहुँचना आसमां तक मेरा हरगिज़ मुश्किल नहीं
मैं बेल हूँ तुम्हें मेरा संबल बनना होगा ।
पत्थरों के जहाँ मैं रहते रहते थक गयी हूँ मैं
इन पत्थरों को अब मेरा भगवान बनना होगा।
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